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________________ ( १३७) लजावी एण ॥ १॥ के बाला बोले सुण बहेनी, इण। जले अह्मारो कंत; जाउत जस जग हुत इसारत, जो जागो आवुत करणंत ॥॥ डेयं सीस वाम कर वलग्यु, अलगुं धमथी थाये जिम; सामी कारण सुहड सजोडा, पडतां वयरी पाडे तम ॥३॥ बाला बालक दास दीकोलां, ते उपर घण घालत घाय; समरंगण सूरास्युं निमतां, वादि के विरला कहिवाय ॥ ४ पंड्यो जित्यो पुण्य तणे बल, मणि माणिक सरसो लंडार; जे जे लीधा देश पुअंगम, विधा गज तेजि तोखार ॥ ५ ॥ जे सीमामा मारग मोटा, पकर देश तणा रखवाल, वेगे विमल तणा पग पूजे, नेट सहित नमीआ नृपाल । ॥ ६ ॥ विमल लई दल पानो वलिङ, त्रिहुं खंभे वरतावी आण; चंडावई परिसर पहुता, ढमक्यां जांगी ढोल नीसाण ॥७॥ तलीयां तोरण गूमी उडी, श्राव! बंधावे वर बाल; रोम नगर जश् आण मनावी, बांजणी बांध्यो जूपाल ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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