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(५७) सामजिक सोजागी सोय ॥॥ जंघ किंग ग्रीवा खघुमान, पृथ्वीपती ते हुए प्रधान; सत्व नानि ने स्वर गंजीर, सामुजिक ते बोल्यो धीर ॥ ए ॥ मोठे मस्तक विपुल ललाट; हृदय स्थल पुहढं ते पाट; सामुधिक बोले सनमुखी, ते नर सदा सुमोटो सुखी ॥१०॥ कलश कमडल कमल मयूर, पुःफ वृक्ष वारि धनुपुर; श्रष्टापद अंकुश अनिराम, स्वस्तिक वृषन सिंह श्रीदाम ॥ ११ ॥ श्रीगृह आरीसो गिरी बत्र, ध्वज चामर जव वाव पवित्र, कमल मयूर सुक साथिळ; काबब शंख शुक्ति हाथी ॥ ११ ॥ तोरण तुरी थाल अनिषेक, सर कुंडल श्रीवछ विवेक; वज्रबंधने नीवीबंध, बोलीयां ऊरध रेख प्रबंध ॥ १३ ॥ हाथ पाय रेखा जे तणी, एणे श्राकारे दीसे घणी; जो बत्रीसे पूरी नंग, नर लक्षण बत्रीस सुचंग ॥ १४ ॥ पहिला लक्षण शरिरना हुआ, था बकण रेखानां जुयां; बत्रीसे बोल्या बहु नेव, बकण प्रीडो वो विद ॥१५॥
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