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( ११५) रीसे चीस मे सारसी, परि परि सवि प्री पारसी ॥ २६ ॥ पग पोढा करि थंच्या थंज, सींदुरे सोढाल्या कुंन; सवा जारनी सांकल खरी, रणके चरणे जिसि नेनरी ॥ २७ ॥ अंबामी पुंठे
आठवी, ते उपर धज ऊलके नवी; बेग नवि माग कुंतार, रण का जुग फूंकार ॥ २७ ॥ अंगे रंगे झमां चित्राम, के मयगल जयमंगल नाम; फूंक फोमके संकल त्रोम, के विष बोम महा मद मोम ॥ २॥ पर्वत ढोल धरणि धंधोल, पर दल बोल केवि रणरोल; एक ताल के वय। काल, के विष काल चमर बंबाल ॥ ३० ॥ गढ गंजण नंजण बल गम, सिंघलीयानां साचां नाम; चाले मयगल मद कबोल, चिटुं पासे चाले चकमोल ॥ ३१॥ तेजी ते पाला तरवस्या, रणसूरा ने रोसे चर्या; हाजर मती ने अरी अमा, जारिज जल हामा नीलमा ॥ ३२ ॥ होला हारु माझ पमा, सरला सेरामा सूनमा, के हामा कलथा काला, जलवद्वा गंगाजल जूआ ॥ ३३॥ सखेर
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