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________________ (१९१) ताम हुजं जग जाण ॥ १७ ॥ हल हल कटक सजाई करे, नड नाथा नालोडे जरे; सगुणी मींगणि पाली पटा, कटारि कातरणि करि कटा ॥ १५ ॥ गदा गुरज गोला गोफणी, जल जलके नालानां अणी; हल मुशल मोगर वर चक्र, गेडी गडाखी लिये वक्र॥२०॥शंख शक्ति तोमर तरुयार, नमीचा नाराच विचार; खांडां खेडां घण घुग्घरा, वली वंश ने बापर बुरा ॥२१॥ सरसी फरसी ने हमबमो, अणीयाली वाली वांकमी; तीखां तेज तपत त्रिशूल, वयरीने सिर मत्था शूल ॥२॥ जरद जोम जमली जीणसाल, लोहवमी मगली टोमाल; हस्तानर्ण अंगूठी खरी, दोरी जरद कवच कर्करी ॥ २३ ॥ पहेस्या अंगा चंगा टोप, रंगे रंगालिना श्राटोप; पहेरे जीव रखी सन्नाह, वयरिने सिर देवा दाह ॥ २४ ॥ मोटा मयगल पर्वत प्राय, बलवंता केकाला पाय; पख्खर पम घुग्घर घमघमे, रण रलीश्राश्त रोसे रमे ॥२५॥ दंतसल पम दाढा जिसि, सरलि सुंढे धाये घसी; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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