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________________ ( ११० ) जांजिरी; पंचालो ते पालो पले, कान्हडी कोगरे रखे ॥ ११॥ काशमीर कंप्यो जडवाय, चौड देशनो चाप्यो राय; बाबरी बेगे बारणे; कन्नुजो ते कीरति करे ॥ १५ ॥ अंग देशनी उलग करो, जीवी मागे जालंधरो; वागडी ते नंखे वाय, सोरठी ते सेवे पाय ॥ १३ ॥ अवतरि रिपु केरो काल, प्रगटि पुण्यवंत प्रतिपाल; मथुरां तणो माल पावे, अरथ अजोध्यानो श्राग्वे ॥ १४ ॥ ढीली (दिसी) नो ते माने हाक, रोम नगरनी थइ तकताक; मुज आगल ए बल श्यां कह्यां, कण उखण तांबूरां रह्यां ॥ १५ ॥ जिमणवारे नवि जमिश्रा वर्दू, करतां पाक रह्या कोरडं;घर करतां ते घर विसयां, ते दोसे बलगा निसर्या ॥ १६ ॥ ते सुलतान तणुं शुं गजुं, जो जाएया तो किम ऊनजु; करो सजाई महेता जाण, जर जीपुं बारे ‘सुलतान ॥ १७ ॥ सूरो सुरातन धडहड्यो, हय गय रह पखरियां बड्यो; चंडावा बाहिर मेहसाण, कीर्छ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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