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________________ (ए४) आपणुं ॥४॥ दहेरासर घर कडे पवित्र, खीरोदक धोती विचित्र चामर बत्र अनो. पम करी, सोय वात बाहिर विस्तरी ॥५॥ वयरी मली वधारे वात, जूपति श्रागल बोले घात; थाप्यो स्वामी विमल प्रधान, पण तुम. थी तिहिं अधिकुं मान ॥ ६ ॥ रहे रान मृगलां तृण चरे, मावा नीर विणासण करे; सजन सुखे रहे जग माह्य, त्रिहुं निःकारण वयरी थाय ॥ ७ ॥ जिनवर टलत न नामे कोट, उछत अनिमानी आरोट; कर जिन मूरति मुना धरे, तुह्म प्रणाम ते आगल करे ॥ ७ ॥ घर बंध्या गज मोटी आस, वालि वली तुरंगम जास, चामर इत्र सजाइ घणी, लेशे नीम राज अवगुणी ॥ ए॥ राज चित्त लागी चटपटी, थर वरसासु फीटी घडी; खत्रो खेद धरे मन मांड, जोइ वाट विमलनी राय ॥ १० ॥ सद् बेतुं ने थइ इक मती, आव्यो विमल विमखज मती: करे प्रणाम बागल कर के। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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