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________________ (एए) बेगे राजसना माहिं धरी ॥११॥ त्यां ममझ ने त्यां डाकलां, त्यां लुंगल कंसालां नला; त्यां लगे ताल चमका पूर, ज्यां नव वजे सबलां सूर ॥ ॥ १५ ॥ सोहे सना मध्ये सिर धणी, विषहर विकट शेष जिम फणी. तरुथर कल्प वदा जिम सीम, मणी मांहिं चिंतामणी जिम ॥ ॥ १३ ॥ तूपति मांहिं रह्यो जिम राम, रुपवंत सिर सोहे काम; दातारिं अवतरी कर्ण, उपे सकल सना आनर्ण ॥ १४ ॥ साहस सूरो विक्रम वीर, मेरु सरिखो महियल धीर; न खमे तेज नीम जय जयो, मुफ माथा उपहिरो थयो ॥ १५ ॥ सना सरोवर सोहे कमल, नीम हसी बोलावे विमल; सुण महेता ब्रह्म हरष थपार, तुह्म घर नवि दी एक वार ॥ १६ ॥ विमल मंत्रि मन कम नदि किशो, जाणतो राजन रंगे हस्यो; स्वामी घर तुह्मारां अने, पहोंचो ‘नोजन करशुं पडे ॥ १७ ॥ साथे तेड्यो सवि परिवार, के पाला घोडा असवार: जव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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