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(७३) जलो, पुत्र जणे ते सूर; जस नारि कर निर. खीये, रेखा बत्र मयूर ॥ ४॥ मृग नयनी मृग कंधरा, मृग पेटि सुकमाल; हंस गमणी सा सुंदरी, नूपतिने घर जाल ॥५॥ जस सिर केस सुललित हुए, मुख मंगलने मोड; दक्षिण वली नाजी वली, पति पामे विण खोम ॥ ६ ॥ जेह कर लंबी आंगुली, जेह सिरलंबीवीण; याय घणुं वबल सहित, घर धन सहज प्रविण ॥७॥ कृष्ण सरिखी सामली, गोरी चंपकवान; अंगवदन ससनेहलां; जीले रंग निधान ॥ ७॥ कन्न कमलं. के पिंगली, देह कंति जलंकत; मणि माणिक सोना तणां, घणां श्राजरण लहंत ॥ए। हसतां तिलवट साथी, जे नारिने थाय; गज रथ घोडा प्रीय घर, सदसगमे बंधाय ॥१०॥ माबे पासे ने गले, लंबण हुये थणेश, कश्मस तिलक जे कामिनी, पहेलो पुत्र जणेश ॥ ११ ॥ अंग अल्प पर स्वेद जस, अक्ष्प रोम सिर जास; निभा जोजन थोडला, उत्चम बकप तास
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