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________________ (११६) मीर, शबद सुणी जंगाण जय, अंगि थलगा तीर ॥३॥ जंचे गोखे चडि चमि, जव जोये सुलतान; क्या कीजे श्राव्या हवे, खुदा तणा फुरमान ॥४॥ किसका दल हादरि हुआ, जव पुढे सुलतान; या विमल बकाल ए, मरडि मनावे आण ॥५॥ इण जीते सवि देशमे, श्ण जिते सवि राय; कर पय लागी माल दे, कश खडी चउ पमि थाय ॥ ६॥ आये हिंषु गोबरे, सुणिमा बोल बकाल; सामा सवि बीनी लेवे, ते क्युं श्रापे माल ॥ ७॥ हिंऽ हम हक्किं गया, सडि विण लित्ता कोट; ते कुण आज बकाल ए, हमकुं देवे डोट ॥७॥ (चाल) हमकुं देवे दोट बकाला, मागे माल बिचारा; हमके हाजर मही असवारा, नही नट्ठी कोश फूफारा; हम मुखतान सनाण समाणे, हमें क्युं नामुं कोट; देखे बीबी अब लोक लूटाजं, मारि करावं सोट ॥ ९ ॥ पकड़ी तेरे 'पाए पमान; तो हूं. सा. हिब तेरा हिंफु कटक करा हेरा, किशं कई Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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