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॥ २ ॥ दरसण पुरां पोषोये, स्वजन वर्ग सहु संतोषीये; देवदूष्य दीजे दोकमा, चंगां चित करे चनपदां ॥७३॥ गडगमता दोजे गुडीयां, नारि नपस्वनां जोडीआं; मेघाबर ने महुवटां, कह पीठ पश्चगणी पटां ॥७॥ दिषरवास खेस खांडकी, गजवडि निर्गल गंगाथकी; दिये जूना ने फरमर तली, नील नेत्र मेघवन्ना वली ॥ ५ ॥ बासस्था सोहे सिर वाप, पट्टकूल प्रतापीया प्रताप; पोता परदेसी साउला, मिशु मन वंडित यज नला ॥ ६ ॥ दिये घण वेलि कण उपटो, धुली धूमरा ने घटी; चोखां चीर चंग चोरसा, लख्या हंस सूडा सारिसा । ॥ ॥ नर्म खर्म साजा सालर, वस्यां वस्त्र वहाव्यां पूर; आ गश्व दिदामणी, संतोषे सवि सोहासणी ॥ ७ ॥ कमल वनां कमखा घाटडी, के काली फाली फूटमी; नारंग) नवरंगी जात, ताजी तारा मंझन जात ॥ ॥ ए ॥ बहु मुलां मोटां मोपीआं, देतां पहेला
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