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( मन प्रीणीयां; धज सनाथ जिनमंदिर बहु, संतोष्यां गुरु गुरुण सहु ॥ ए॥ लेई जान वलीआ घर जणी, ससरे कोधी पहेरामणी; याव्यो विमल के उग्यो सूर, जई जोहमी वजाव्यां तूर ॥ ए१॥ साहमो आव्यो नगर नरेस, वरे वडे वर कीयो प्रवेस प्रीयसुं प्रेम पूर मांमती, श्क आबण पाणी बंमावतो ॥ ए॥ देवालये पुहतां वर वहु, रामत रमतां जोए सह; गुरु गोत्रजने करे प्रणाम, पुहचे वास तj जिहां गम ॥ ए३ ॥ परएयो वर पेसारो हुन, मागत जन ते मागे दूर्ग; दान माने रली.
आयत थयो, संतोष्यो सद थानक गयो॥ ए४ ॥ नव योवन बे नवला वेस, (बहुने माने नगर नरेस; बिहु सिर अगर बहके वास, वेल हुआ बे लील विलास ॥ एए ॥ बेहु विचक्षण बे गुणवंत, बिहुने पोते पुण्य अनंत हसतां हरषे पाडे होड, बे सुरंगी सरिख। जोड ॥ ए६ ॥ वामी वन डे रलीथामणां, हे के फूल अनो
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