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________________ ( २४ ) ॥ ३ ॥ कटक मांहिं जे गाढा कटा, ते टाली कीधा एकता; सुजट सहस दश के जोम, जे जाजे जुपतिना मोम ॥ ४ ॥ मन चिंतव्या मनोरथ फल्या, व्यापारी ते लेई वल्या; घ्याव्या नगर ईशा असवार, जय जागो वरत्यो जयकार ॥५॥ नगर की बाहिर उतर्या, जतारा पूरब दिशि कर्या; तिहां थानक अंबाई तपुं, करे लोक याराधन घणुं ॥ ६ ॥ रह्या सुनट विंटी प्रासाद, जाग्या वयरीना उनमाद; जिहां जिहां जाय तिदां जय वरे, अंबाईनी उलग करे ॥ ७ ॥ याव्यो दिन दीवाली तणो, मंडे नट उच्छव अति घणो महा पूज मंगल आरती, त्रूटी बाई महासती ॥ ८ ॥ मया करे बाइ मात, रयणीमांहिं गढ कीधा सात ए साते पड सबलां श्शां, वयरी नेद करे नही किशां ॥ जो तुझे मानि महारी आण, तो वसवा आप्या दिवाण, खंध तुह्मारी कीधो वास, बेगे वालों बयरी घास ॥ १० ॥ चढे कटक वयीने नडे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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