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________________ (५३) तुम कहेवा जणी ॥ १॥ सुणी वात मन रंज्यो राय, ततखिण मेली सवि समुदाय; जिन प्रासाद देविनुं गम, परव्युं उस वंशनुं नाम ॥२॥ ॥वस्तु बंद ॥ नगर वासिऊं नगर वासिऊं, नाम एस; उहड पोढि निजनरें, सुपन मध्य सची आवि श्रावी; तेणे वचने प्रासाद जिन, देवी गम निश्चल करावी; उस वंशनी थापना, जवसि वसीथा जेण; जैसवाल अरमकमस, कारण कही तेण ॥ १॥ ॥चौपाई॥ पुहतो वछ राय अवगणी, नवल हुई श्रीमालह धणी; आवे धाड धसंती घणी, नगर लोक सवि थयोरे वणी ॥ १ ॥ आवे लूसे लगमे हणे, ते सरीसु नवि चाले कणे, खंन नगरने काढी खवा, तेड्यो चक्रवर्ति पौरवा ॥ २ ॥ स्वामी नगर वडुं श्रीमाल, ते सूसाये विण रखवाल; रक्षा करो म लावो वार, जड मोकलो जला फार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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