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________________ ( १२३ ) माने आज उठ कोडि साहण पलवणाय, माहरे मन विमल ते वाय ॥ १४ ॥ सुतो किमे जगाड्यो सिंह, तुज सामीना नमीश्रा दीद; जा रे जइ विनवे अबूऊ, होनगरपति मागे कूंज ॥ १५ ॥ अपमान्यो अवगणि बहूत वेगे. वली जैरव नूत; विमल मंत्रिनी सजा पहुत, यति दूहवाणो बोले दूत ॥ १६ ॥ ते तारो वयरी बांको, यति विसमो विषनो यांकको; जे तुज बोल्या बोल अनंग, कदेतां जीन थइ शत खंग ॥ १७ ॥ दूतकदण तव प्रीबधुं खरं, चाल्युं कटक सिंधु पाधरुं; मारग बडे पीआणे थयो, दिवस केटले उठे गयो ॥ १० ॥ ढमक्या ढोल डाक डमवडी, रा पंड्या श्रवणे श्रुति पड़ी; श्राव्यां को पर दल दमवमी जायें रखें नगरने मंडी ॥ १५ ॥ विमल विशेष करावी जाण, सिंधु महीपती मानो श्रण; नहितर नोसरि पई सजोम, तुज मुख जोवानुंबे कोड ॥ २० ॥ उपो म जीडी जपनो, किम जाइश मुजस्युं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org ܕ ܐ
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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