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( ४६ ) प्रसिद्ध, दम्म दोई लक बहुत्तर ली ॥ १११ ॥ टोडर बिरूद सुखासा लीयो, नग्गो ते वली नग्गो कीयो, जस कीरति अधिक बोलाय, देव सूरि हू कलयुग मां ॥ ११२ ॥ देम सूरिनां मोटां चरी, टाली अमावस पूनम करी; जेहने पउमावर परत, जित्यो देव बोधि किय शिष्य ॥ ११३ ॥ कुमारपाल हूर्ड जुपाल, जे जग जीव दया प्रतिपाल, मारि निवारी देश अढार, वावरतुं नही अगल वारि ॥ ११४ ॥ जेहने साहब लाख ईग्यार, गल्युं नीर पीजे निरधार; ते पण कलयुग मांहिं दुर्ज, जीवदया - नो कहीं ये J ॥ ११५ ॥ कलयुग मांहिं जगत्र जाणी, जे चेले लोडण आणी गोडी मंगण पारस नाथ, संकट पमीयां आपे हाथ ॥ ११६ ॥ जीराउलानो महिमा घणो, खंजनगर बे थिर थंजणो; सिद्धखेत्र तीरथ गिरनार, कलयुग मांहिं हुआ उद्धार ॥ ११७ ॥ वस्तपाल जगऊ जगसीह, जीमसाइ जको जम
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