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साथ, तुहि धन नवि बुटे हाथ; कह्यं वचन तव कोपे चढ्यो, तुज पाखे गढ रह्यो ने अड्यो ॥४॥ जा तणो जरूसो हतो, उहम मन थयो उरतो; सुश्रण म मग्गो अंचलि उमि, मोटा माणस लागे खोडि ॥५॥ नाजे गति स्वर जीणो थाय, शरिर परसेवो जय मनमांह्य; दयामणो देखे सहु कोय, मग्गण मरण समाणो जोय ॥६ चंद तणे ने सुरज मित्त, घमियुं तेज तव थयु चल चित्त; आव्यो सूरज घर करी बास, दोसे शसिकर पत्र पलास ॥ ॥ अण तेम्युं नर पर घर जाय, मान मोहत नवि पामे राय; साहमुं कांई चमे कलंक, सूरज तणे घर गयो मयंक ॥ ॥ ७॥ तव उहम मन थयो निरास, माग्युं अर्थ न पुदती श्रास; आणी डंस रह्यो मनमांद्य, एणे अवसर जु कमै पसाय ॥ ए ॥ नगरमांहिं राजानो पुत, गर्वे मागे ग्रास बहुत; राउ न आले माग्यो पास, कहेतां नश्ल हुआ बम्मास ॥१०॥ जणे मंत्रि नृपति अवधार, कुंअर मनावो वडे.
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