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(४२) क्षण क्षण परें कलयुग पूर, बारगणो ते तपसी सूर; वसुहां घणो होसे विखवाद, सागर वली मेहेलसे मर्याद ॥७३॥ अउठ हाथनी दवडां देह, काले हाथ जि होसे बेह; के वरसे धरसे गाज, घणी हाण ने थोडा लान ॥ ४ ॥ श्राव्यो कलयुग चोथो काल, माय बाप ते मेहेले बाल; को कहिने न वि माने गणे, सह चाले बंदे श्रापणे ॥ ५ ॥ सादम लवता नहीं खल खांच, एके उत्तर श्राले पांच; विनय गयो ने वाध्यो मान, लख परि लोने मांड्या कान ॥ ६ ॥ क्रोध कलंकी मुहवडी थयो, उपशम रस ते नासि रह्यो, माया मांडे मोटायती, अध बलती ते नासे सती ॥ ७॥ मन कुडे मित्राई करे, कोश् न मांडे हश्मे खरे; ज्यों देखे त्यां खेरी खाय, पढे रूप थापणे थाय ॥ ॥ धर्म तणा मारग के रह्या, सात व्यसन ते सबलां थयां, करे तप घरखूणे खाय, महिल माहे मोटा थाय ॥ नए ॥ लेतां हाथ
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