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________________ (४३) जि लहेका देय, देतां धर्म जणी धूजेय; मोटा माणस मेहेले माम, धर्म ध्यानना थोडी गम ॥ ए० ॥ पेट तणे कारण सहू रले, सूधा मारग किण नवि पले; सीदातो लंखाइ गले, जो अर्थ अचिंतो ढले ॥ ए१॥ हाट थाट ते मांड्या जाल, करे कूम ते न्हाना बाल; मोटा नगर ते गयां घटी, राय लोने कर मागे हठी ॥ ए॥ निरधारां ते निरधन थाय, उर्बल दोहल्या पेट जराय; वेद तणा ते महिमा टल्या, वीस वरसना मांटी पक्ष्या ॥ ए३ ॥ नारी हिंडे मोडा मोड, बीजं घर मांडतां नवि खोडा घणे खबेमें पामे वेस, वसे वन ने जवसे देश ॥ए॥वरसे वरसे मागे वरसात, ते कृतयुगनी मोटी वात; एक वार वरसतो रसाल, वरस सहस दश तो सुगाल ॥ ए५॥ एक वरस अणवूठो जाय, तो उर्जद . पडे जगमांड; फेरे थोडे होय करवलं, कलयुगे जोइ पारखु खरं ॥ ए६ ॥ धर्म तणी जो मंडे वात, आवी कोइ करे उपघात पापे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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