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________________ (३०) दरशण ते गंदा करे, जाणे पात्र अह्मारां जरो उत्तम नमे नीचने पाय, वरते वरस वीसासो श्राय ॥ ५३॥ मही मोटी मामे वात, जाणुं सोवन झपा धात; फामे पाडे जोला लोक, धूतारा धूतारे फोक ॥ ५४ ॥ करे पुण्य के दिन ने रात, तेहनी करे निरंतर तात; न टले गुरु न टले देवथ, खाए गरथ चढे जे हस्थ ॥ ५५॥ राय राणा ते संध्या खले, खत्री नासे दी दले; न्याय नृप थोमे परिवार, निःफल मंत्र घणा संसार ॥ ५६ ॥ धर्मतणी थोडी वासना, अल्प मृत्य आवे शासना; दीसे देहि घणी पाउलि, नावे. नगति करे पातली ॥ ५७ ॥ दाता नर दारिखी घणा, कृपण तणे घर नहि रिध मणा; पापी जीवे धर्मि मरे, कामधेनु ते उखर चरे ॥ ५ ॥ जे जुगे ते वखाणीये, साचो नर ते अपमानीये; अलवे बेग बोले मर्म, धोई पातिक करे विकर्म ॥ ५ ॥ मा देखी मुह पाबुं करे, नारी देखी दशं रे; बेटा देखी मंझे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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