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________________ ( १५४) ववराय, सुण समु देवाला थाय; कर चोदय चोपट चंग, जो मन जिन धरमनो रंग ॥ ११० ॥ जमतां अन्न न विखोडीए, विण सवाद मुख नवि मोडीए; प्रीशुं नोजन नवि गडीए, वातजी हरस नवि मांडीए ॥ १११ ॥ बेगे थासणथी मम चले, नोजन अवर साथे मम नले; उणो उठे को लिए वे कोलिए, मुख पवित्र कीजे तंबोलए ॥ ११५ ॥ देह शुकि नवी धारी खरी, पढ़े जिनवर दर्शन करी; वाम अंग धरि धरि विवेक, जय सिज्या पोढे क्षण एक ॥ १९३ ॥ उठ्यो वली करे व्यव. हार, नीच सरोसो नही व्यापार; नवि लोपे जिनवरनो धर्म, प्री पन्नरे खर कर्म ॥ ११४ ॥ बाली काठ करे अंगार, वेचे करमज ते के कुंनार; वाह सोनार लोहार, अगनि कर्म इंगाल विचार ॥ ११५ ॥ पाटा आंबा रायण तणा, वन बेद्यां अणद्यां घणां; वामी काळा करसण करे, पान फल वन कर्मजि हरे ॥..११६ ॥ घमें घमाबे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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