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________________ (१४१) इसु परिक्षा करी, धर्म योग्य श्रावक ते धरि; समकित आदे दे व्रत बार, पंच अणुव्रत वीये नार ॥ १६ ॥ धरीये ध्यान देव अरिहंत, जगति नली सहगुरुनी संत; जिनजाषित ते साचो धर्म, त्रिहुंए बोले समकित मर्म ॥ १७ ॥ पहिले प्राण हिंसा ए टाली, बीजे अली म बोलो वली; त्रीजे व्रत चोरी मम करो, परनारि चोथे परिहरो ॥ १७ ॥ व्रत पंचमे लोन घण टाल, बके दिशिनो निश्चे पाल; व्रत सातमे लोग उपत्नोग, अनर्थ दंड आठमे योग ॥ १५ ॥ नुमे सामायक आखेप, दशमे दिसिनो सदा संखेप; पोसह पुण्यव्रत अग्यारमे, अतिथि दान द्यो व्रत बारमे ॥ २० ॥ आपण उत्तम थई वापरे, खावे पीवे गति नवी करे; विण अंतर जो उत्तम थाय, नर बीजा किम नीच कहाय ॥ २१॥ श्रावकने घर हुए आचार, जाणे नद अनद विचार; सहगुरु वयण वखाणे इस्युं, जाणे नही तो पाले किस्युं ॥१२॥ कंद जाति ते सघली नणी, ए बत्रीस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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