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________________ ( ४८ ) वसेय बे बाना दातार, नानाविध बे ज्ञाति अनेक, वसवानो बे वडो विवेक ॥ ३ ॥ कोट मांहिं कोटीधज थोक, बाहिर ते लाखीया लोक, प्रागवाट तिहां वासे रह्यो, नीनग मंत्रि कोटीज को ॥ ४ ॥ घटयुं धन तव त्रूटी आस, महेता पूरो बाहिर वास; ब्राह्मण जणे विमासो चित, नगर मारे आगे रीत ॥ ५ ॥ मध्यरात्रे दो हिलो डुख धरे, महालखमीनुं चिंतन करे, विलनिवात इसी कथी, इणे थानक तुज नायग नथी ॥ ६ ॥ मान वात तुं मदारी खरी, जा थानक वेगे परहरी; गूज्जर देश तपो सिणगार, गांजु नगर हुसि जयकार ॥ ७ ॥ तिहां तुं पामीश धननी कोड, लधि वचने चाल्यो परहोम; जाग्यो जीनमालथी धस्यो, जातो जर गांजु वस्यो ॥ ८ ॥ नीन अंग नही एके खोड, नीने मेली धननी कोम; इष अवसर चावडो वणराज, चिंते नगर वसावुं आज ॥ ए ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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