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________________ ( १२ ) माय; दानी मानी ज्ञानी लोक, थानक थानक मलीया थोक ॥ ४७ ॥ लिजे किजे बहु जेटणां, मणि माणक बहु मूलां घणां; जरी बाब कुसमांची कोम, श्री जेटी सजन करजोड ॥ ४८ ॥ माता जले पधार्यां तुझे, आज सनाथ थया बुं छो; नालिकेर नारंग डाख, महेल्यां फल फोफलना लाख ॥ ४९९ ॥ मेवा मोदकनां माटलां, चंदन चूयानां वाटलां; पान पुराणा नागरवेल, वादी अगर कपूरि रेल ॥ ५० ॥ श्री संतोषी जगतें करी, कंठ हुंती जे माला धरी; ते खाली यासिका विशाल, श्री थिर थाप्या श्रीश्रीमाल ॥ ५१ ॥ वेगे वधावी हरखी सिरी, पुहती पदम सरोवर पुरी; माल एक ने महाजन बहु, वदे वाद जन जोई सहु ॥ ५२ ॥ एक जणें नहीं श्रपुं श्रह्मो, एक जणे नवि लेशो तुझो; एक नणे वरि माह करूं, पण हुं पाठो नही उसकूं ॥ ५३॥ जेट तपुं जिहां लागू लाग, एक नये श्रह्म शीषजाग; स्पां मोटां स्यां नान्हां बाल, जागे जल वि www.jainelibrary.org Jain Educationa International For Personal and Private Use Only
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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