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________________ (११) नीगमें, कृतयुग पूरो जाएयो जिमें; रमल चमे मन जावे जिहां, त्रेतामांहिं पधायाँ तिहां ॥४॥ मणि माणिक रत्नावली जड्यो, त्रूट्यो हार नूमि जई पड्यो; रदयां रतन नगरीमां गयां, लेतां लोक अखुटी थयां ॥४१॥ एक कमां ने रलीश्रामणां, लीला लखमी दीधा घणां; अवर लोक आवे उलट्यां, वीणे वेग न दीसे घट्यां ॥ ४२ ॥ घर बेठग देशाजर फल्यां , रतन अमुलिक श्रावी मट्यां; करे प्रगट्यो वयरागर गम, रत्नपुर ए झहुं नाम ॥ ४३ ॥ बार लद सहस बप्पनवे, त्रेता वरसज एतां वहे; घर श्राव्या देई बहु मान, त्रेता युगमां दीजे दान ॥ ४४ ॥ बेठी लाउ विमाने चडी, जोऊं नगर घमी अधघडी; करजोमी पाय लागे राय, पाली पदम सरोवर जाय ॥४५॥ त्रेता युग थयो विसराल, श्राव्यो छापर पमतो काल; महारं नगर रखे सीदाय, लालि पुति तिणे गय ॥ ४६ ॥ जय जयकार हू जगर्माह्य, प्रगट पधायाँ लखमि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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