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________________ (२०) ज्ञाति सिणगार; बिझद बोलावे बंदीजणह, महाजन राय साधार ॥१॥ ॥ चोपाई॥ बोल्या वर्ण विशेष अढार, तेहनो केतो कहूं विचार; वर्ण अढारे सहु मुख कहे, विगत विवेक विरमा लहे ॥१॥ व्रते करीने ब्राह्मण ज्ञाति, करि हथीआरे क्षत्रि जाति; करसणकारि वैश्य कहाय, नाटकीया नर शुभ जणाय ॥२॥ ब्रह्मचर्य पाले तप करे, कांकरी कनक समी मति धरे; सर्व जीवनी आणे दया, सकल जाति ते ब्राह्मण कह्या ॥३॥ शूरवीर विक्रमनोधणी, बहु आरंज परिग्रह जणी; निर्दय कर हथीयार पखाण, सकल ज्ञाति दात्री अहिनाण ॥ ४ ॥ करसण कर्म सकल व्यवसाय, सकुलो डाह्या पंमित मांहिं; जाणे कला करे व्यापार, सकल झांति जो वैश्य विचार ॥ ५ ॥ मूर्ख अवसर मारे अंग, नाचकर्मि नाटकनो रंग, जेह नाराच मखर देखीये, शुभ सकल जाति पेखीये ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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