SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १५६ ) अलवे उघाडां रकग्ग; अह्मे उलग बंडी बल जोई, जास्युं जो लहिस्युं घर मग्ग ॥ ११ ॥ अग्गल अरी दल पूंछ पृश्विपती, गयणे सुरपती पेखे मन खंत: के समरंगणे सूरा रोसे, मयगलई देखत पदित ॥ १५ ॥ सुणि जिणसाली ढोल ढमकिया, बालवे ढीलो सन्नाह; सरोवर कमल जमल जिम विद से, पर दल दी तोरो सन्नाह ॥ १३ ॥ रस पके के कायर काचा. पामर कामर पूंठे पलंत; समरंगण सूरास्यूं समवमी, धीरी घोसी धसी मिलंत ॥ १४ ॥ सूरा सूरपणे सम. रंगण, मत्त मयगल श्रावी ल; दंतूसल मुसल पग परवि.लि मोती कुंजस्थल रोल ॥ १५ ॥ तोरे विरोधे बल लेई आयो, सिंधू धणी जो मांमयुं कृतः अति अनीमानी आण न माने, राम पंड्यो अजाण अबुऊ ॥ १६ ॥ बे मद माता मुब मरोमे. घोमे पाखरीश्रा पहाण; त्रीसे दंमायध समरे, करमता काला केकाण.॥॥ काला टोप रंगालि काली, काला अंगा ने कर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy