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( १५५) जडवू, जिम नविल ताहारो तात; वीर जननी मुज बिरुद धरावे, जिम वसुदां थानं विख्यात ॥४॥ केवी लणे मुज हाके डरी, पाए पडतो वारोवार, शठि जुधिरण किम कूफिश, स्वामी ते दीहा संचार ॥ ५ ॥ नयण वाण नवि खमतो निरतां, कायर रण दोहदयां करवाल; नाठो नाह नीसत घर आवसि, कायर नारि हुसि मुज थाल ॥ ६ ॥ सही समाणी हासां इससे, होसि कायर नारि कलंक, सुहमा सरिसो जो रण
ऊत, प्रीय पालो परविस पग लंक ॥ ७॥ के सुंदरि कहे सेजे सुअंतां, कुसुम कली दूहवातो देव; सेव ध्रसुको सरल सांजलसी, समरंगण किम सहसो देव ॥ ७ ॥ के कायर सिर कंचलूचाई, सुंदरि वेष सुश्रावड मांहि: पुढे पासे परीची बंधावे, नरवरना नर जोई जाई॥ ए॥ के बाला बोले बलवंति, नयणे कंता नींद निवार; हय हेषारव नला न होई, वादहा के वयरी घर वार ॥ १० ॥ कायर घाहर थरहर फुके, देखी
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