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________________ ( १५६ ) ॥ १२३ ॥ कान पुन वेदे खफणी, पूठ कलावे करदा तणी; दाण वोलावी थाई तलार, लिगोतिहरानो व्यापार ॥ १२४ ॥ पाटा गाम मकाते करे, हुंता कराकर करे, निर्दयपणां तपां जे काम, ते निलंबन कहीये नाम ॥ १२५ ॥ धर्मबुद्ध के वयरे कर के बाले उगंति हरी; दे दावानल ते दव कर्म, किम पामे जिनवरनो धर्म ॥ १२६ ॥ सरोवर यह सुकविया कुत्र्या, के उलीच्यां जल जूजू कास निक वालतां अधर्म, ए कहीये सवि सोसण कर्म ॥ १२७ ॥ हिंसा करे जीव ते सदी, पोसे सुडा ने सालही; कूकम स्वान मोर मांजार, पृष्ट नारि सवि परिवार || ॥ १२८ ॥ पोसे दास दीकोलां घरि, जाणे वेचुं मातां करी; माबी तेली ने तेरमा, बाबर कठिन कसाई समा ॥ १२९ ॥ वागरीयां सरीसो व्यवहार, सती पोष म क़रो लगार, ए पनरे खर कर्मादान, टाले श्रावक सोइ प्रधान ॥ १३० पहोर पाढली वेला लही, सामायक पडिकम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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