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________________ ( १५७ ) चल चल लख कवी, चौद लाख जेदे मानवी ॥ ॥ १३७ ॥ सामायक पुंठे पचखाण, चौद नीम संगारे जाण; प्रह उगते लीधा मन रूली, (ते) संध्याए संखेपे वली ॥ १३५ ॥ सचित प्रव्य विगे पारखां, वस्त्र कुसम वाहन सारखां; शयन विलेपन दिसि अंघोल, ब्रह्म जगति संख्या तंबोल ॥ १४० ॥ वांदी देव अध्धुं जव बिंब, लही वेला गई अविरंब; अतिचार एकसो चवीस, बालोश्ए करि नामी सीस ॥ ११॥ समकित आदे व्रत ग्यार, संलेखणा सरिसा बार; पंच पंच बोल्या नव मिळ, अतिचार पो हता पांसह ॥ १४२ ॥ व्रत सातमे वीस विस्तार, तपाचारना बोल्या बार: वीर्याचार तणा त्रण नेल, अतीचार शत पूरा मेल ॥ १४३ ॥ ज्ञान श्रने दर्शन चारित्र, आठ आठ बोला पवित्र मनस्यूं आलो निसि दिस, अतिचार एकसो चोवीस ॥ १४४ ॥ सामायक पुहते संज थयो, पारी पागे मंदिर गयो; अणसण समकित गाथा जणी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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