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________________ (२०) ॥२५॥राजेव्यो जव पहातणो, गकुर गाम गम दिअनो; रहो राज पूरू मन रूली, कहे वाणी कुंअर कुंअली ॥१६॥ अह्मे न आव्या लेवा ग्रास, जाणुं उवस वासु वास; नूमितो जिहां न हुए धणी, गम देखाडो ते हित जणी ॥२७॥ जोश राज विमासे ताम, गकुर विना न देखे उगम, पश्चिम दक्षिण पूरव जणी, जोतां जोयु उत्तर जणी ॥॥ देश घणानी श्रावी संधि, एक थली ले तेहने कंधि; अ सदैवत अह्म घर तुरी, पुचो तुरी लेई करी ॥ ए॥ जोतो जे थल आवे जाम, ताम तुरंगम करी प्रणाम; चिंती जोग करे जे नळु, आठ पुहर मेटहे मोकलुं ॥ ३० ॥ हयवर चंपे जेती सीम, पढ़ें पालो आवे जिम; वेगे वधावे मुगता फले, नगर वासजे तेणे थले ॥३१॥ । ॥ वस्तु बंद ॥ कुंअर चाल्यो कुंअर चाल्यो, तुरीथ सोई साथ; उहम सरीसो आवीयो, तेणे गमे ते तुरीय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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