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(१०६) कहे राय ॥१॥ जणे मंत्रि राजन सुण वात,
आगे विमल पितानो तात; लहिरि आदे लेखे लागीये, बप्पन कोटि टंका मागीये ॥२॥ ईणे ममें धन लीजे कसी, धनहीणो शुं करशे वसी; धन विण माणसने मद टले, धन विण नर मोटा खलनले ॥ ३ ॥ धन विण कोई न माने बोल, धन विण थाशेरंक निटोल; धन ली, तो लीधा प्राण, नीर विहुणुं जिशुं निवाण ॥ ४ ॥ मंत्रि सना प्रहउगम गयो, राय को उपरागे थयो; नर समुष पाटणनो धणी, राउ रिसाव्यो कहो शा जणी ॥५॥जणे मंत्रि सुण विमल मंत्रिस, राउने ले लेखानी रीस: बप्पन कोटि टंका घर जरो, के वीने लेखू करो ॥६॥ जो तुम्हे रानी वंडो मया, करो बोल जे तुम्हने कह्या; वल्यो मंत्रि जव मंदिर जाय, आपे लेख कोई कर मांह्य ॥७॥ वांच्यो लेख विदि करी, वाणोत्रे वोहत्या बे तुरी; दीधुं दाणचोरीनू पाल, राय पेडिये लिया समकाल ॥ ७ ॥ जुथाई तो उपर
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