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( १०५) आवी विमल पाये पमे, जोजे जन दिधो बेरवी ॥ जय विमल ॥६॥
॥ चोपाई॥ खंड खंगमति ने निर्मली, श्रोता सांजलज्यो ए जली; विमल मंत्रिने रासे जाण, एटले बहो खंग वखाण ॥१॥ सर्व गाथा १०२॥ ॥ इति श्री पंडित लावण्यसमय गणि कृते, श्री विमलमंत्रि प्रबंधे, चक्रेश्वरी अंबीका आराधन, श्री अर्बुदाचल प्रासाद प्रतिबोधन, बाण त्रितय कला पकटीकरण, व्याघ्र मन्त्र युक जयाधिकारे, षष्ट खंग संपूर्णम् ॥
॥ खंड सातमो ॥
। चोपाई॥ मंत्री राउ विमासण करे, देव शक्ति ए केणे नवि मरे; आपण जे जे कस्या उपाय, ते विसराल थया
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