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________________ वसे व्यवहारी श्रीदत्त, तेह तणे घर काकुं वित्त; श्रीबेटी यौवन वय हुश्, जोसी विवाह मेलो जः ॥ १० ॥ जोसी नयर घणे श्राफले, मलता वरगनो वर नवि मले; जोसी कहे सुण महेता वात, लहिर वीर जे जग विख्यात ॥ ११॥ तेह तणो ने बेटो विमल, पदम सरोवर जेवू कमल; तेह तणी जे जनमोतरी, मुफ टिपणे लखी डे खरी ॥ १५ ॥ ते सरिसो विवाद श्रादरो, वर मोटो पृथ्वीपती करो; ते सरिसो मलतावस मले, मन चिंतव्या मनोरथ फले ॥ १३ ॥ रहे गेहमी घर माउला, जाउँ तुझे तत्र उतावला; वहेला वहेले वहिलिया करया, सुणवर ते सरिसा जोतस्या ॥१४॥ बडे पीश्राणे रथ संचरे, खेत्र पास देवि स्वर करे; सुणवश कहे वर ठे हां, पण जश्ये उतारो डे जिहां ॥ १५ ॥ घर माउल तणे जव गया, वीरमती व जांखां चयां; आगे यहां रह्यां , उखे, रणी को आव्यो होय: रखे ॥ १६ ॥ मन विण अप्लाषण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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