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________________ ( ५१ ) दिवंगत दूर्ज, योगराज पट्टोधर थयो; योगराजनुं पतीजं आय, रत्नादित्य हू तव राय ॥ ११ ॥ रत्नादित्य रायने पाट, वयरसिंह राय बेठो पाट; चिहुए पाटे चाल्यो दूर्ज, दंडनायक ते लद रिजि दूर्ड ॥ १२ ॥ लहरि पुत्र हू साहस धीर, वरे वडो वीरातन वीर वीर नामे बेटो ऊबरे, पाप जणि पगलां नवि नरे ॥ १३॥ वीरकुमर गेहमीच मकार, वीरमती परणाव्यो नार; राज काज बांब्या व्यापार, मन सुद्धे मांड्यो व्यवहार ॥ १४ ॥ उजय काल परिकमणुं करे, पूजा ध्यान धर्मनुं धरे, न करे प्रेमे पियारी तात, श्री नवकार जपे दिन रात ॥ १५ ॥ वीरमती रहे प्रीयने देज, अन्य दिवस पोढी बे सेज, मन चिंते मुऊ प्रीउनं मान, पण घर सुनुं विण संतान ॥ १६ ॥ श्रावी निद्रा रयपि मकार, सुपन लदे वीरमती नार; जाणे देवें आल्यां कमल, में पूज्या तीर्थंकर वीमल ॥ १७ ॥ जागी सुपन लही ते सती, प्रिय यागल या मलपती; कह्युं सुपन तव हरख्यो For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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