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(६५) मंत्रि लीये दीख, करे विहार विदेशमे, पाले सह. गुरु सीख-पाले सहगुरु सीख ॥ १॥
॥दूहा ॥ दिन दिन दिसे दीपतो, जिम उदयाचल जाण; विमल पेखी वयरी तणां, पोढा पडे पराण ॥१॥ वली विशेषे विहिवसे, वहेलो विमल प्रधान; रखे ते राउले वापरे, ब्रह्म टलशे अनिमान ॥२॥ एक वयरी विष वेलडी, ए बेहु त्रिजि व्याधि; जे उगती दीये, तो सिर हुए समाधि ॥ ३॥ वीरमती विझलं सुणी, बेटा रख्खण कजा; पट्टण परहुं महेली करी, पुरती पीयर मज ॥ ४ ॥
॥ चोपाई ॥ वीरमती तव पिहर गइ, संपति सघली पंवे रही, साथे बेटों विमल कुमार, जइ कीधो मावला जुहार ॥ १॥ आगे जाई घर श्रनाथ, आवी बहिनर बेटा साथ; मोटोपणमाहिं सही रखे,
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