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( १५० ) ढलाव्या वली; धर्यां शस्त्र पहेरी पावमी, नाखी गड गुंबम खालडी ॥ ७ ॥ नयण कर्ण मस्तक ने खाल, नख नासिका दंत ने गाल; ए श्राठे मल नाख्या दरी, बेगे पग उपर पग करी॥७॥ रांध्यु के अंगीतुं कयु, के जिनमंदिर ढोरे जयु; जेट्या जिन पहिरे खासमे, रामत रमी गेडी दमे ॥ ३ ॥ नाख्या रगत पीत नही जला, ह्या वमन नाख्या कोगला; नागे के बेगे जुवटे, कर्या वणज सालट पालटे ॥ ४ ॥ के तंबोल जखी सुखडी, करी नीत ते लुहमी वडी; चंप्यो चंपाव्यो पमपमी, कयाँ युद्ध घडी पा घमी ॥ ५ ॥ दीधा सराप गालि घणहठी, पाडी होम करी पालठी; पाड्यो पगरज पगनो पंक, सुतो नीड़ा करे निशंक ॥ ६ ॥ जंड कला जोजन फीलगुं, वीण समारी पारिखपणुं; नाख्या दंत दम्या खर तुरी, साता वस्तु वहेंचण करी ॥ ॥ कर्यो मंत्र घड्यां हथोबार, कस्यो साद देई रे कार; मुकुट खुप ते नहि गेडीथा, जिन
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