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(१३५ )
॥चौपाई॥ श्रावी विमल बेगे पाट, नीमराय तव जेटण साट; बत्र चामर मोकली सार, त्रिहुं खंडे तोरो व्यापार ॥ १॥ में मोकलीयां गनने नाव, सात बत्र सिर चमर ढलाब; करे वीनती बे कर जोड, तुम्ह इहवे अम्ह लागे खोड ॥ ३॥ अम्हस्युं डंस रखे मन धरो, तुम्ह विवहार अडे आकरो; नीमे जे मोकळ्या प्रधान, ते संतोषी थाप्यां पान ॥३॥ घणा दीवस दोहले खलजल्या, सिंधु देशना महेता मख्या; मेहेलो प्रनु पंड्यो अखंम, मुह माग्यो वलि लेयो दंग ॥४ उपन्न कोडि धन दंझे करी, त्रण लाख वली ताजा तुरी; आण मनाची प्रात्यो देश, विमल वधाव्यो नगर नरेश ॥५॥ रान पंड्यो के जइरहे, अह निसि आण क्रिमलनी वहे; रोम नगर ने मा हुति, वरस वरस आचे. खिजमति ॥६॥ चमिन रयवाको जोड फिरी, तिसन देखे चंडापुरी; विमल वाणि से मुख उच्चरी;
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