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________________ (५) ससरा देवर (अने) वर विणास; सामुजिकनी माने शीख, के बंडे के पडसि जीख ॥ ३ ॥ लंब ललाट ससुरो संहार, लंबोदर देउरने नार; लंबे जग पति जाये मरी, राक्षस रूप नारी श्रवतरी ॥ ४ ॥ लंब होठ जीह कालो कुरो, पीली श्रांख साद घोघरो; अति गोरी अति काली नार, वरजे ब माणे संसार ॥ ५॥ हसतां गाले खामा पमे, रामा रंग रमल ते चडे; चालंतां नुं कंप अपार, कामिनि वयर तणी करनार ॥६॥ पाय तणी वचली आंगुली, टुंकी नूमिसाथै नवि मली, ते जो टुंकी उन्नत रहे: नर्ता नारि अनेरो लहे ॥ ७॥ अंगुठा पासे आंगुली, उन्नत जूमि न फरसे वली; कुमरीपणे जारज जाणेह, यौवनवय माणस संदेह ॥ ७॥ अति ऊंची अति नीची वली, यति जाडी ने अति बंसी; अति.गोरी थति काली नार, ते अंगण श्रापणे. निवार ॥ एकाक अंघा नारि मम राख, घोघर सर ने पीली धाख; जो पति गाढो जूने . .. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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