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________________ जलमांहिं दश जोश्रण रह्यु, दोई कोस जल उपर कडं, परिधि जोअण त्रण काजी लही, नीरज मूल वज्रमें सही ॥ ५ ॥ रिष्ट रत्न म कांडु घडयुं, नाल रत्न वैमुर्ये जड्यु; बाहिरज्यंतर वर्ण विचित्र, कनक रत्न म बोल्यां पत्र ॥ ॥६॥ रक्त वर्ण जिसि वर्णिका, कोस रूप सोदे कर्णिका; लंब पुहल बोल्या दोश् कोस, उंचपणे एकज बोलेस ॥ ७॥ सोश् चक्केसरि वृत्ताकार, त्रण कोस काका विस्तार; कमल कर्णिका विच अनिराम, लखमी वास जवन ते उगम ॥७॥ कोस लंब पुहलपण आध, जंगुं कोस उंच ते लाध; कमला मंदिर वरकाणीये, त्रण बार त्रिढुं दिशि जाणियें ॥ ए ॥ उत्तर दक्षिण पूरव नपुं, पंच पंच शत जंचा धण; धनुष अढीसें पुहलां बार, बोल्यु त्रिडंदिशि तणुं विस्तार ॥ १० ॥ जवनमध्य मणिमयकोटमी, (तिहां) शय्यायें श्री देवी चडी; दीनकरनी परें तेजे तपे, त्रिहुं जुवन चाले नवि पे ॥ ११ ॥ वझे कमल श्री Jain Educationa International anal For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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