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________________ (१) हुइ तिहां तिहां तिसि ॥ ४६ ॥ के बाला त्रिपुरा मुख वसी, मूरतिवंती सरसती हसी; जे वलतुं पुढे बालिका, न हुए उत्तर सहु दे तालिका ॥ ४ ॥ करी निरीक्षण हरख्यां हीये, कर सूखडी सबल करि दीये; अति मान्या सजनस्युं मदयां, लेइ लगन घर पाबा वल्या ॥४७॥ श्रावी विरमतिने कडं, त्रिभुवन रूप एक थयु; जे लदाण सामुहिक तणां, (ते) ते दीसे अनोपम घणां ॥ ४ ॥ अवगुण एक नही श्रासनो, महिमा वली घणो वासनो; रत्नयोति पाटण, नाम, विनय विवेक तणुं ज्यां गम ॥५०॥ जे जे ब्रह्म साचवणी करी, ते जाणे परमेसर परी; फोफल फन पान पकवान, वाट्या देह तणां अह्म वान ॥ ५१ ॥ करो सजाई वीवा तणी, गहूं पलाले सोहासणी; पापम वडी करियां पकवान, साल दाल सवि सोध्यां धान ॥ ५॥ घाल्या मंडप वेगे विशाल, आएया घणा सोनाना थाल: मेट्यां आसन ने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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