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( १७६) विस्तार करे प्रतिष्टा तणो ॥२४॥ लोक सक थावे अजिराम, धर्मघोष सूरी तेड्या ताम ॥२५
॥ वस्तु ॥ विमल वसही विमल वसही, विमल प्रासाद; पीतल जार अढार मई, आदिनाथ प्रतिमा प्रतिष्टीय; संवत चौद अट्यासोए, वर प्रतिष्टा शुन लगन कोधी, मंग कलश धजा लद लहे, उडव मेरू समान, मूल नायक थिर थापीआ, जिम उदयाचले जाण ॥ १॥
॥ चोपाई॥ विमल मनोरथ चड्यो प्रमाण, याचक बोले मंगल गण; संघ लोक पहिराव्युं सह, महीथल उडव कीधो बहु ॥ १॥ मेघ सरिसो मांड्यो वाद, ईनुवन अधिको प्रासाद; जोतां चिंतन महीअल जाय, श्राव्योउलट अंग न माय ॥२॥ अर्बुद शिखर अनोपम कीध, तेकी संघ जला. मण दीध; ग्राम तणा के गरासीआ, पोकथाम
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