Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रंथ : सन्देश- वन्दन
कोटिकॉटिवन्दनारे.....शाळजाक
महान साहित्य सर्जक
जब हम किसी को उसकी मृत्यु के पश्चात भी याद करते हैं और उसकी स्मृति में कोई महत्वपूर्ण कार्य करना चाहते हैं तो यह निश्चित ही मानना चाहिए कि मृतक शारीरिक रूप से भले ही हम से बिछुड़ गया हो मगर वैचारिक रूप से वह आज भी हमारे बीच में विद्यमान है। इस संदर्भ में जब हम यह विचार करते हैं कि प्रातः स्मरणीय बाल ब्रह्मचारी व्याख्यान वाचस्पति परम श्रद्धेय आचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्र सूरिश्वरजी म.सा. की दीक्षा शताब्दी के अवसर पर एक स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन किया जा रहा है, तो हमारी उपर्युक्त बात सत्य प्रमाणित होती है। आज अनेक मुर्धन्य ख्याति लब्ध आचार्य एवं मुनिराज है जिनके अभिनंदन ग्रंथों का प्रकाशन होना चाहिए किन्तु किन्हीं कारणों से नहीं हो पा रहे हैं और श्रद्धेय आचार्य श्री की दीक्षा शताब्दी पर एक स्मृति ग्रंथ का प्रकान हो रहा है यह हार्दिक प्रसन्नता का विषय है वैचारिक दृष्टि से आचार्य श्री आज भी हमारे मध्य विराजमान हैं, जिनसे हमें प्रेरणा मिलती है।
श्रद्धेय आचार्यश्री न केवल साधक थे वरन उच्चकोटि के साहित्यकार भी थे। उन्होंने विभिन्न विषयों पर संबंधित लगभग 60-65 पस्तकों की रचना कर उनके माध्यम से समाज का मार्गदर्शन किया उनका साहित्य आज भी प्रासंगिक है। आपने साहित्य में उन्होंने जो जानकारियां दी है वे आज भी प्रासंगिक है। इतिहास के क्षेत्र में उनका लेखन अद्वितीय है। उनके प्रवचन आज भी प्रेरणा स्त्रोत बने हुए हैं। उन्होंने अपने लेखन से हिन्दी साहित्य के भंडार में अभिवृद्धि ही की है। उनकी अप्रकाशित रचनाओं का प्रकाशन हो जाता है, तो यह स्वागत योग्य है।
वा आपके इस महत्वपूर्ण आयोजन की सफलता की मैं हृदय से कामना करता हूं। आचार्य श्री के चरणों में कोटि-कोटि वंदना। प्रति, ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण'
नीयफ मिठूलाल ओस्तवाल श्री मोहनखेड़ा तीर्थ
जनता टेंट हाउस, जावरा प्रधान सम्पादक श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ
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