Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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________________ जयसूरोवि नरिंदो सहि नजाइपायपमिलग्गो। पत्नणखमसु मुणीसर जंरश्यं तुझे उच्चरियं॥ है। * जंपश्मुणिवरिंदो नरवर मा वहसु निय मणे खेयं। जंजेण कयं कम्मंतं सो अणुहंव नियमेण // अन्नं च॥जो पुणकुणश्छुगंबंमलमयले मुणिवरं निएकण।सोहोगंबणिजोजवे नवे कम्मदोसेणं ] जेण नणिमलमश्लपंकमयला धूलीमश्लानतेनरामश्लाजेपावपंकमश्लातेमश्लाजीवलोगंमि सोऊण श्मं वयणं नवनीया नणश्सुहमई एवं / जयवं पावाश्मए तुम्हेवि सुगंबिया पुच्विं // 73 खामश्पुणोपुणोवियंचलणेसुविलग्गिऊणमुणिवसहोतेणविसापरिजणियाजद्दे माँ कुणसुमणखेयं 4 एवं खामंतीए एवं सवपि सोसिय कम्मं / नवरं तु एगजमे अणुहवियत्वं तु नियमेण // 5 // धम्म सोऊण पुणो पयकमलं पणमिऊण केवलिणो। नियनयरं संपत्तो सो राया पिययमासहि॥ संपुंन्नदोहला सा सुहमश्सुमणोहरंमि समयंमि।सुहदारय पसूत्रा पुत्व दिसाचेव दिणनाहं॥७॥ कहाण नामधेयं रऊं दाऊण तस्स सो राया। पवजं पमिवन्नो गुरुमूले पिययमासहिजे // 7 // पवळं काऊणं सोहंमे सुरवरो समुप्पन्नो सुहमविय मरिऊणं देवी तस्सेव संजाया॥ ए॥5 जुत्तुं सा सुरसुखं चविऊणं हविणारे नयरे।जियसत्तुमहीवश्णो जाया धूया विसालछी // मयणावलिनामाए देहोववरण पत्तसोहाए / परिणय, तीए सयंवरो राश्णा विहिर्ज // 7 // 1 तुन / 2 कुणसु३ मश्लं / / गंजणि / 5 पुणविय / 6 पडिजणिया। उ नदि तुम कुणसु मा खेयं / | कोसियं / एव / 10 संपन्न / 11 पुबदिसाएव / REAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak i

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