Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 68
________________ अष्टप्र. // 3 // NECRECASSSSSSSSSHRA है पमिवङिाऊण एवं सुवन्नमणिरयणघमियपाया।सुरनयरीसारिछा विणिम्मिया तेण सानयरीज्य || नैवेद्य विण्दुसिरीए सहि हलिराया ती पवरनयरीए। मुंजेश विसयसुखं संइसहिउँ सुरवरिंदव॥६॥ इह लोगंमिवि पत्तं जिणवरनेवऊ पुन्नदाणेण / मण सुररऊँ हलिणा सहिवं कलत्तेण // // ना नेवऊफलं दोन्हें वि नजाहि 'सो हलीरायानेवऊं जत्तिकै पदियहं कुर्ण जिणपुर 4 वच्चंति तस्स दियहा सुहावगाढस्स तंमिनयरंमि। देवस्सव सुरलोए जम्मंतरजणियपुन्नस्सा श्राउकयंमि देवो सोविय चविऊण विहिनिउँगेण / विएहुसिरीए गप्ने संजा तस्स पुत्तत्ति ए| है कय कुमुथ नामधे संपत्तो जुवणं सह कलाहिं / जम्मंतर सुकएणं नरवश्णो वबहो जाउँ // 1 // दाऊण तस्स रङ काऊण य सावगत्तणं परमं / जिणनेवऊफलेणं नप्पन्नो पढमकप्पंमि ॥ए॥ दहूण निययरिजियसबे निसुणिऊण देवाण / चिंतश् सो संतुछो पुवनवे किं कयं सुकयं // 3 // जेणेसा सुररिकी संपत्ता अबराज मणश्छा / अवहिवसेणं जाण जिणवरनेवजादाणेणं ॥ए॥3 श्य एवं सविसेसं पुबनवं जाणिऊण हलिदेवो / आगलश्पश्दियहं पुत्तस्स विबोहणघाए॥॥ हरयणीएँ पछिमछे पश्दियहं नणश्महुरवाणीए / निसुणसु तुमं नरेसर महवयणं एगचित्तेण // 6 // | // 3 // / 1 एवं / 2 कंचणमणि नवण तुंग पागारा / 3 सुरनयरी सरिला / * (शची)। सुरवरिंकुब / 5 दाणपुंनेण / 6 सुहरऊ। 7 हलिया। कलियं / ए दोहिवि / 10 सह। 11 सुमणोऊं। 12 आनरकरण / 13 काऊणं सावगं परमरंमं / 14 नववन्नो / 15 देवरिहिं / 16 जइसई / 17 देवीणं / 17 रयणी। R Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak

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