Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 88
________________ अव // 4 // श्रष्टप्र-तं हणिऊण गदं वियरश्रन्नं मिजाव सो सीहो।ता दिछो सरहेणं कोहानलजलिय चित्तेण // 6 // जह सीक्षण गरंदो पहर्ज सीहेण तेण सरहोवि / जोकरे कम्मं चुंजश्सो जम्मंमि // 6 // पावो पावस्स फलं पावर पावेण श्व जम्मंमि।जह सो गयंदवहगो सीहो सरहान संपत्तो॥३॥ // रुद्दशाणोवगउँसो सीहो सरहघाश्य सरीरो / मरिऊण समुप्पन्नो नेर पढमपुहवीए॥६॥ तब गई सो सीहो बहुःयण नेत्रणा विसहंतो।न लहश् खणंपिसुकं तिलतुसमित्तंपिपुस्कत्तो॥ अविनिमीलिय मित्तं ननि सुहं पुस्कमेव अणुबा नरए नेरश्त्राणं अहोनिसं पच्चमाणाणं // 66 // सो तब सीहजीवो नरए पुकाई अणुहवेऊण।बाउकयेणं जा सुंदरसेहित्ति तुह जणज॥६|3 जो पुण गदजीवो सो पुण कोमीसँ परिजमेऊणं। सुंदरसेहिस्स सुत्रं संजाउँ सुरपिठ तुमय॥६॥ एयं परनवचरियं तुस मए साहियं समासेण / एत्तो श्हनवचरियं साहिऊं तं निसामेह॥६॥ एब नवे जं नेहो जणयसुयाणं च विहमि तुम्ह / तं पुवनवावङिय करवेराणुबंधेणं // // धम्म वा कम्मं वा वेरं पियं च एव जम्मंमि / अप्नासान पवह नवंतरे सर्वजीवाणं // 1 // अन्नंचिय जो अलो दिछो तुम्हेहिं श्ह पएसंमि।सो तुह पियामहेणं पस्कित्तो पुत्तनीएण॥७५| सोविय ए, पएसे मक्को कहकहवि उग्ग जुयगेण।मरिऊण समुप्पन्नो पोमाडो" मोहदोसेणं॥७३ : १एच / रुद्दलाणाणुगढ़ / 3 निमीलण / 4 अणवरयं / ए अहोनिसिं / 6 आनरकयंमि / 7 लवकोडीए। 8.पीई। एश्व / 10 श्च / 11 पुंश्रामो / // 4 // 1 Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak

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