Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 86
________________ // 4 // अष्टप्र. अबो एयस्स पिउँ' नाहं परिजाविऊण हियएणं / अश्गुरुयमबरेण व मुक्को सहसत्ति जीवेण॥३६॥६॥ अवा मरिऊण समुप्पन्नो सो तंमि निहाणगंमि मोदेणं।गोहेरगो गरिहो चिश्तब हि निच्चं // 37 // |8|| पुत्तो विलकचित्तो चिंत हियएण पुन्नर हिउहं।तावि मए पहर्ज जायंचन छियं मन॥३॥ एवं विसन्नचित्तो पुत्तो मुस्कानलेहिं संतत्तो / साहाए पनहो वानरोवें सोए अप्पाणं // 3 // मयकिच्चं काऊणं पिउणो सो कह वि अन्नदियहंमि / संपत्तो निहिगणं लोहेणं तस्स दवस्सधग जा चिश्तब तिन ता पिलश् तं गुहेरगं पुर। दंतग्गगहिय रयणावलीए तेएण पजालंतं // // 18/तं दणं सहसा सो जाउँ कोहलोहपरिगहि। चिअवलोयंतो कुविय कयंतो पुप्पेठो // 42|| 1 सोविय तं दणं नमत्ति जयपसरवेवर सरीरो / नासंतो उणं पहउँ पुत्तेण सीसंमि // 3 // रियणावलीसणाहं नियदेहं शत्ति सो विमुत्तूणं / उलावगरूवेणं" संजा कम्मदोसेणं // 4 // सो सुरपियानिहाणो पुत्तो तं रयणमालियं घेत्तुं / नियमि निवेस नियजाया बाहुजुयलव // तं निम्मलगुणकलियं दययं पिवे रयणमालियं दहुं"।मन्न जुवणनहियं अप्पाणं सुरपि हिको| चिंतश् सो नयनी एयं जश् परिवो वियाणे। ता महसहसीसेणं गिल नब संदेहो // 4 // 1 वबहो / 2 नाम्हे / 3 पाणेहिं / 4 पुरकानलोह / 5 वानरुव / 6 निहिगणे / 7 संजाउँ / " कयंतुब / // 41 // |ए सुप्पिडो / 10 दंडेणं / 11 लावगरूवेणं / 12 धित्तुं / 13 पिय / 14 रश्यं / 15 दश्यंपिव / 16 लद्धं / 17 हर श्मं नहि संदेहो। W Ac- Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Tre

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