Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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________________ // 45 // अष्टप्र. जयसिरि पवत्तिणीविय उप्पाश्यदिवकेवलसमिछि। निहुविय कम्मसेसा संपत्ताणुत्तरं गणं॥१४॥ तह मयणसुंदरी विहु कमलसिरीचेव दोवि पवङ / काऊणं कालगया उववन्नाउ महासुक्के 145|| नगवंपि विजयचंदो पमिबोहेऊण नवकुमुयाइं। तुंगगिरि गरूयसिहरे संपत्तो सासयं गणं 143 एयं परमपय सुपसबं मंगलं च कहाणं / हियनिय सुहजणगं चरियं सिरिविजयचंदस्स // 144 श्व समप्पश्चरियंसुपवित्तं विजयचंदमुणिवश्णो। निसुणंताणं एवं कुणउँ सुहं नवियलोयाणं // एयं जो सुणश्नरो निच्चलचित्तों विसुझबुद्धीए / सो नवकविमुक्को पावश् मुकं सदासुकं 146 एयं मंगल निलयं चरियं सिरिविजयचंदकेवलियो / जा गयणे गहचकं ता मोहं हणज नवियाणं // 1 सिरिनिव्वुयवंसमहाधयस्स सिरिश्रमयदेवसूरिस्स। सीसंण तस्स रश्यं चंदप्पहमहयरेणेयं॥१४० % रश्यं विचररहियं चरिथं सिरिविजयचंदकेवलियो / गाहाबंदनिबर्क नवियाणं विबोहणछाएं १४ए है। / देयावमवरनयरे रिसहनरिंदरस मंदिरे रश्यं / नियवीरदेव सीसस्स साहुणो तस्स वयणेणं // 15 // मुणिकमरुद्दक(११५७)जुए काले सिरिविकमस्स वदृते / रश्यं फुमकरवं चंदप्पहमहयरेणेयं 151 || जाव जसो ससिधवलो धवलश्महिमंगलंजिणिंदाणांताव श्मंजयउजएचरियं सिरिविजयचंदस्स इति पूजाष्टके अवशिष्ट कथा समाप्ता। | 1 संपन्नाविसुध। संपत्ता सासयं / 3 दोविगहिय / 4 जयवंपि / 5 नविय / 6 संजण्यं / 7 कुए। // 4 // - सुविसुहचित्तो। ए हियगुणगण / 10 जिणंदस्स / SHAHISIRLIQLARISORSHIN MOSAS पोषा SC Gunratnasuri MS Jun Gun Aaradhak. T X

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