Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 66
________________ *45 अष्टप्र. तुह्मवयणेणं गंतुं नणि सो सूरसेणनरनाहो / जई तुह धूयाश् श्मो वरिजे अन्नाणमूढाए॥६॥ नैवेद्य * पुणरवि ता कुणसुतुमंधूयाई सयंवरं नरिंदेसु / संमाणेह पुणोते मा कुणसु अपत्तियं तेसिं // 6 पूजा. // 32 // श्य नर्णिं सोपत्नण थेवोविहुश्च नवि महदोसो। दिन्ने सयंवरे कन्नगाश्वरियवियपमाणं // 3 // सोऊण दूर्यवयणं सवे जपंति पछिवा रुठा। गिन्हह लडं कुमारिं हणिकण श्मं हलियपुरिसं 64 अन्नोविहु जो पखं वहेश एयस्स सोविहंतवो / श्य जणिकणं हलिउ नणि रे मुंच सुकुमार 65 सुरवरकय संनिसो जंपश्हलिउवि कोपऊ लिउँ / सयखंझ किं न गया जीहा एवं जणंताणं॥६६॥ जय पुर्णं तुम्हे बहवेतह विहु किं मन कीरश्रणं मिासीहस्स किंव कीरश्बहुएहिं विजंबुगसऐहिं६७ * तो नणश्चमसीहो नियपुरिसे कोहजलणपऊ लिजीरे हणह श्मं मुठं तोमह जीहं च मूलादण ते तवयणा सुहडा घायपहारेहिं जाव पहरंते / ताव समुह हलि पजलंतं तं हलं लेड"६ए| तं दहण पणहा ते सवे सामिणो गया सरणं / चिंतंति सामिणोवि य किं एसो सुरवरो कोवि०|| तो ते मंचे मुंत्तुं सवेविय पबिवा समं तेण / वेढंति हलियपुरिसं सीहं पिव कुंजरों बहवे॥१॥४|| - कोहग्गिपळालंतो जलंत हल पहरणेण पहरंतो / बलजद्दो श्व रेह एगागी समरमशंमि॥७॥ | १जह / 2 धूयाए / 3 ए / // 32 // जणिए / ए वरिजेविय / 6 दृ। / संनियो / कोह / ए कह / 10 जइविहु / 11 कोलुयसएहिं / 12 जीयं / 13 पायपहारोहिं / 14 पहणंति / 15 चित्तुं / 16 सबेविय / 17 ता। 10 मंतेजणं / १ए गयवरा / *S HARE* RIAGunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trul

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