Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 82
________________ अष्टप्र. // 3 // श्य जणिए अहतीए सम्म नियकरयलेण फुसिऊण / श्रवणीय खणेणं वाहिघडो तीइसीसा || कलश श्य चरियं धूयाए दणं सह जणेण नरनाहो। पदियहं जत्तीए जिजलाश् उडम // 6 // पूजा. कुंचसिरीविय निच्चं निम्मल जलजरियकणयकलसेहि। जिणमजाणंकुणंती तिन्निविसंसानचिठेश उग्गयनारी वि विसुङमाणसा साहुणीहिं सह निच्चापंच महत्वय कलिया विहरश्जणसंकुलं पुहविं मुणिनाहोवि महप्पा पडिबोहेऊण पाणिणो बहवे। विहरश्अप्पमिबद्धोगामागरमंझियं वसुहं६३ / कुंनसिरी विय आलं परिपालेऊणे सुद्धपरिणामा। मरिऊण समुप्पन्ना ईसाणे सुरविमाणंमि 64 जुत्तूण तल सुकं सुरनरसुखं च अणुहवेऊण / जिणवरजलपूयाए सिनिस्सपंचमे जम्मे // 6 // श्य अहविहं पूयं जवा काऊण वीयरागाणं / पावंति विग्घरहिया निच्चसुहं सासयं गणं // 66 // इति कलशपूजायां अष्टमं कथानकं समाप्तम् / . इत्यष्टप्रकारैः पूजा कथिता। 1 चणियाए तीएं। 2 वसुहं / 3 परिवालेऊण / PREGAROORKERALARIAGRSHANKAR // 3 // c.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak

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