Book Title: Vijaychand Kevali Charitra
Author(s): Chandraprabh Mahattar
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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________________ अष्टप्र. प्रजा. // 36 // ACCACASSE सो फलसारनरिंदो दश्यासहि विसुद्धनत्तीए। जिणफलपूयाकरणे समुङ' निच्चकालं मि'७३ 8 फर उम्मुक्त जुवणो सो रङ दाऊण चंदपुत्तस्स / दश्याश्समंधीरो निरूतो जिणवरपयंमि // 4 // उग्गतवं काऊणं दश्यासहियो विसुङपरिणामो।मरिऊण समुप्पन्नो सत्तमकप्पालए देवोऽय उग्गयदेवोवि चुई समयं जगाइ सत्तमे जम्मे / सिनिस्सर सो धीरो जिणफलपूया पयाणेण| श्य जिणवरफलपूया नणिया सवोवगारिणी एसा ।संखेवेण महनासुपसला होउ नवमहणी इति फलपूजायां सप्तमं कथानकम् / 1 समुनु / 2 निच्चकालंपि / 3 जुबणस्स / 4 चंदसारस्स।५ जिणवरमयमि। 6 जुग्गयदेवेण समापनावेण / SA // 36 // cGunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak

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